देहरादून। मानस मन्दिर बकरालवाला मन्दिर प्रगंण में चल रही श्रीमद् भागवत कथा पंचम दिवस में प्रवक्ता आचार्य सतीश जगूडी ने कहा कि जीवन इच्छा के अनुसार नही आवश्यकता के अनुसार जिया करो, और कहा हमारे पांच ज्ञान एवं कर्म इन्द्रियों में जब भी विकार आता है तो समझो अज्ञानता रूपी पूतना हमारे मन मे आ गई है। अज्ञानता व मन की अपवित्रता ही पूतना है इसे केवल एक राक्षसी के रूप में ही नहीं देखना चाहिए, उन्होंने आगे बताया कि इंद्र के अभिमान को चूर करने के लिए उनके स्थान पर गोवर्धन पूजा कराया यह एक परिवर्तन था हमें समय-समय पर प्रकृति के अनुसार परिवर्तन को स्वीकार कर संतो एवं महात्माओं की सलाह को माननी चाहिए। आयोजन में गोवर्धन लीला में सुंदर 56 भोग एवं मनोरम झांकी भी निकाली गयी और श्रीकृष्ण बाल लीला के बारे में सुन्दर वर्णन किया। श्रीमद् भागवत रसवर्षा जिसमे प्रसिद्ध कथा प्रवक्ता आचार्य सतीश जगूडी द्वारा श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव के बाद श्रीकृष्ण बाल लीला के बारे में सुन्दर वर्णन किया। कथा के दौरान भगवान श्री कृष्ण के बाल लीला बारे में कहा जिसके अनेक रूप और हर रूप की लीला अद्भुत। प्रेम को परिभाषित करने वाले, उसे जीने वाले इस माधव ने जिस क्षेत्र में हाथ रखा वहीं नए कीर्तिमान स्थापित किए, माँ के लाड़ले, जिनके संपूर्ण व्यक्तित्व में मासूमियत समाई हुई है। कहते तो लोग ईश्वर का अवतार हैं, पर वे बालक हैं तो पूरे बालक। माँ से बचने के लिए कहते हैं- मैया मैंने माखन नहीं खाया। माँ से पूछते हैं- माँ वह राधा इतनी गोरी क्यों है, मैं क्यों काला हूँ? शिकायत करते हैं कि माँ मुझे दाऊ क्यों कहते हैं कि तू मेरी माँ नहीं है। 'यशोदा माँ' जिसे अपने कान्हा से कोई शिकायत नहीं है? उन्हें अपने लल्ला को कुछ नहीं बनाना, वह जैसा है उनके लिए पूरा है,' मैया कबहुँ बढ़ैगी चोटी। किन्तु बेर मोहि दूध पियत भइ यह अजहूँ है छोटी।'यहाँ तक कि मुख में पूरी पृथ्वी दिखा देने, न जाने कितने मायावियों, राक्षसों का संहार कर देने के बाद भी माँ यशोदा के लिए तो वे घुटने चलते लल्ला ही थे जिनका कभी किसी काम में कोई दोष नहीं होता। सूर के पदों में अनोखी कृष्ण बाल लीलाओं का वर्णन है। सूरदास ने बालक कृष्ण के भावों का मनोहारी चित्रण प्रस्तुत किया जिसने यशोदा के कृष्ण के प्रति वात्सल्य को अमर कर दिया। यशोदा के इस लाल की जिद भी तो उसी की तरह अनोखी थी 'माँ मुझे चाँद चाहिए, श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व के अनेक पहलू हैं। वे माँ के सामने रूठने की लीलाएँ करने वाले बालकृष्ण हैं तो अर्जुन को गीता का ज्ञान देने वाले योगेश्वर कृष्ण। इस व्यक्तित्व का सर्वाधिक आकर्षक पहलू दूसरे के निर्णयों का सम्मान है। कृष्ण के मन में सबका सम्मान है। वे मानते हैं कि सभी को अपने अनुसार जीने का अधिकार है, अपनी बहन के संबंध में लिए गए अपने दाऊ (बलराम) के उस निर्णय का उन्होंने प्रतिकार किया जब दाऊ ने यह तय कर लिया कि वह बहन सुभद्रा का विवाह अपने प्रिय शिष्य दुर्योधन के साथ करेंगे। तब कृष्ण ही ऐसा कह सकते थे कि 'स्वयंवर मेरा है न आपका, तो हम कौन होते हैं सुभद्रा के संबंध में फैसला लेने वाले।' समझाने के बाद भी जब दाऊ नहीं माने तो इतने पूर्ण कृष्ण ही हो सकते हैं कि बहन को अपने प्रेमी के साथ भागने के लिए कह सके, राजसूय यज्ञ में पत्तल उठाने वाले, अपने रथ के घोड़ों की स्वयं सुश्रूषा करने वाले कान्हा के लिए कोई भी कर्म निषिद्ध नहीं है, कथा श्रवण करने आसपास के भक्तजन प्रतिदिन बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं।
कृष्ण बाल लीला की मनोरम झांकी निकाली गयी